नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-25

लक्षणा तुम्हारे चेहरे का तेज स्पष्ट बताता है। तुमने उस दिव्य तिलस्मी चाबी के दर्शन प्राप्त हुए हैं। जिसे एक बार देख लेने के पश्चात लगभग कामयाबी प्राप्त होती है। यह बड़े सौभाग्य की बात है मेरे कुल के लिए। मेरे ही कुल दीपक ने फिर एक बार दर्शन प्राप्त किये उस तिलस्मी चाबी के जिसके लिए न जाने कितने ही यत्न करना होता है। तब भी उसके दर्शन तो दूर, उसकी परछाई भी दिखाई नहीं देती, कहते हुए दादाजी प्रफुल्लित थे। और स्पष्ट अनुभव कर रहे थे।

उन गौरव के साथ कि उनकी पोती लक्षणा को ऐसी विशेष ईश्वरीय कृपा प्राप्त हुई। लेकिन कहीं ना कहीं उनके मन में यह भी सोचकर चिंता थी, कि वह चमत्कारिक चाबी जीवन के उस पड़ाव पर दर्शन देती है। जब जीवन चुनौतीपूर्ण हो या सामने चुनौतियां खड़ी हो। इसका मतलब साफ था कि उनकी पोती लक्षणा का जीवन आगे अत्यंत ही संघर्षमय होने वाला है। लेकिन भला वह3 संघर्ष क्या हो सकता है?? यह सोचकर उनके चेहरे पर अचानक भाव में परिवर्तन आ गया। जिसे लक्षणा ने कहीं ना कहीं भाप लिया।

लक्षणा ने उसके दादाजी को आश्वस्त करवाया। दादाजी यदि ईश्वरी शक्तियां साथ दे रही है, तब चुनौतियों से घबराना उनकी अवहेलना होगी। इसलिए बिना किसी विचार के आगामी भविष्य के लिए विशेष योजनाएं तैयार की जानी चाहिए। ना कि भविष्य में आने वाली परेशानियों के बारे में सोच-सोच कर अपना वर्तमान समय जो की तैयारियों के लिए मिला है। उसे यूं ही गवां देना ये ठिक नही होंगा दादाजी। अपनी पोती की इतनी समझदारी भरी बातें सुनकर दादाजी अत्यंत प्रसन्न हुए, और उन्होंने शुभकामनाएं और आशीर्वाद दे लक्षणा को कहा कि वह अपने प्रत्येक प्रयास में सफल हो ।

वो पूछना तो चाहते थे कि लक्षणा से किस तरह उस चमत्कारिक चाबी ने उन्हें दर्शन दिए। लेकिन यह नियमों के विरुद्ध था, इसलिए उन्होंने ऐसा प्रयास करना भी उचित नहीं समझा। लेकिन फिर भी भला अपनी संतान को चुनौतियों के सामने देख भला वे कैसे शांत रहते। किसी तरह उन्होंने दिन और रात काटी और अगले दिन तड़के सुबह पहुंच गए, महाराज चित्रसेन के पास,,,,,,,!

चित्रसेन जी माता के दरबार में पूजन में व्यस्त थे। लेकिन लक्षणा के दादाजी के आने का कारण उन्हें स्पष्ट समझ में आ रहा था, क्योंकि दिव्य शक्तियों से युक्त और उनकी कृपा प्राप्त मनुष्यों की मन की स्थिति कभी भी और कहीं भी छुपी हुई नहीं होती। उन्हें सरलता और सहजता से पढा जा सकता हैं। पूजन के बाद ध्यान और उसके बाद बैठक इतने समय के इन्तजार में सुनील जी (लक्षणा के दादाजी) की व्यग्रता साफ नज़र आ रही थी।

यह कह पाना आसान था कि वे किसी विशेष विषय को लेकर यहां आए होंगे। तब चित्रसेन जी ने मां को प्रणाम कर सुनील जी को प्रसाद दिया। और सब कुछ जानते हुए भी उनके आने का कारण पूछा। तब अति व्यग्र हो सुनील जी ने अपनी संपूर्ण व्यथा और मन की स्थिति चित्रसेन जी के सामने व्यक्त की। इस बात पर सुनील जी को ढांढस बांधते हुए उनसे चित्रसेन जी ने कहा, कि श्रीमान मैं आपसे एक ही सवाल पूछता हूं, उम्मीद है सही और सटीक जवाब मिलेगा।

आप खुद ही बताएं कि मां भगवती की कृपा से जिस क्षण आपको चमत्कारिक चाबी के दर्शन हुए, क्या इसके पश्चात कोई भी चुनौती आपको परेशान कर सकी या जीवन के किसी भी क्षण आप जरा भी व्यथित हुए?? नहीं ना..... तब फिर आप किस बात को लेकर चिंतित हैं। परीक्षा कसौटी पर कसने का साधन है। यदि जीवन में परीक्षाएं नहीं होती तो व्यक्ति प्रयास करना छोड़ देता। हर पल प्रयासरत रहना मनुष्य के स्वभाव में इसलिए है, क्योंकि वह भलीभांति जानता है, कि कोई भी चुनौती किसी भी समय उसके समक्ष आकर खड़े हो सकती है, इसलिए वो हर पल अपने आप को तैयार करता रहता है।

सुनील जी फिर आप भली-भांति जानते हैं, कि स्वर्ण को भी आभूषण बनाने के लिए खुद को उचित ताप गलाना होता है।  तब कहीं स्वर्ण आभूषण बनना तय होता है। बिना थाप लगाए माटी से घड़ा और बिना घिसे और अपना अंश त्यागे अपनी प्रकृति बदले,,,,! ना तो तलवार में धार हो सकती है, और ना ही वह उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

ठीक उसी प्रकार से बिना मेहनत के, बिना तपे, बिना चोट खाए और खुद को झोंक देने की प्रवृत्ति जब तक किसी मनुष्य में नहीं आती। तब तक वह अपना पूर्व स्वरूप बनाए रखे हुए और बिना कोई चुनौती सहे, वह कभी भी एक सफल इंसान नहीं बन सकते।

अब आप ही बताएं कि आप किस बात को लेकर चिंतित है। फिर भी आपकी संतुष्टि के लिए आपको आश्वस्त करता हूं। जैसा कि आप जान चुके हो कि लक्षणा ने उस चमत्कारिक चाबी के दर्शन किए हैं। मतलब साफ है कि उस पर कहीं ना कहीं नाग माताओं की कृपा अवश्य है। इसलिए आप व्यर्थ में चिंता ना करें, शुभ आशीष दें और अपना आजतक का संग्रहित ज्ञान उसे प्रदान करें। क्योंकि बच्चों को साधन और सुख सुविधाएं प्रदान करने से अच्छा उन्हें अच्छे संस्कार और ज्ञान प्रदान करना ज्यादा बेहतर होता है। जिसके पास यह दोनों चीजें हो। वह कभी भी किसी भी समय, किसी भी साधन को जुटा पाने में पूर्ण सक्षम होता है।

इस बात को सुन सुनील जी संतुष्ट हुए और उन्होंने निश्चय किया, कि अब वे शक्ति कृपा पर अविश्वास अपनी चिंता के साथ नहीं दिखाएंगे। सुनील जी बेफिर्क अपने घर लौट गए। उन्होंने पुनः कई वर्षों बाद उन पुराणों को निकाला, जो अब तक एक लंबे समय से अलमारी में बंद थी,  क्योंकि वो जानते थे कि ऐसी कोई भी समस्या क्यों न हों। जिसका हल हिंदू शास्त्र में उल्लेखित ना किया गया हो।

भारतीय शास्त्र अपने आप में संपूर्ण विश्व की परिपूर्णता लिए हुए हैं। इसलिए हम भारतीय लोग इन सबमें बहुत विश्वास करते है। लक्षणा के दादाजी सुनील जी ने उस पुराण को प्रणाम किया। और पुराण को पढ़ना शुरू किया। उनमें सृष्टि के आरंभ के भी पूर्व से लेकर समय गणना कल और हर घटनाक्रम के साथ सृष्टि के अंत के बाद और पुनः निर्माण तक का संपूर्ण विवरण का वर्णन है। जिसे सिर्फ जरूरत है तो उनका सही तरीके से अध्ययन करने की।

क्रमशः.....

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